Ramdhari Singh, known by his pen name Dinkar.
He was an Indian Hindi and Maithili language poet, essayist, freedom fighter, patriot and academic.
He emerged as a poet of rebellion as a consequence of his nationalist poetry written in the days before Indian independence.
Ramdhari Singh Dinkar, whose poems were exuded with veer rasa, was popularlarly known as a poet of rebellion.
Ramdhari Singh DinkarRamdhari Singh Dinkar
Ramdhari Singh Dinkar is considered as one of the most important modern Hindi poets.
His nationalist poetry written in the days before India's independence made him popular as a poet of rebellion.
Dinkar's poetry was exuded with veer rasa. He has been hailed as a Rashtrakavi (national poet).
Dinkar was born in Simariya, Bihar on September 23, 1908. Dinkar was greatly influenced by Iqbal, Rabindranath Tagore, John Keats and John Milton.
His youthful mind became increasingly radical during the Indian freedom movement and his emotional nature got charged with poetic energy.
Dinkar's first poem was published in 1924 in a paper called Chhatra Sahodar.
His first collection of poems, Renuka, was published in November 1935.
Dinkar was elected to the Rajya Sabha thrice and was the member of the upper house from April 3, 1952, to January 26, 1964.
He was awarded the Padma Bhushan in 1959.
He was also served as the Vice-Chancellor of Bhagalpur University in Bihar in the early 1960s. He died on April 24, 1974.
Do you know?? Dinkar's poetry continues to inspire youth even today.
Dinkar poem
सच है,
विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
शूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
Let's Read, feel and tribute him by Remembering and Reading his collection of some poems:-
मुख से न कभी उफ कहते हैं,
संकट का चरण न गहते हैं,
जो आ पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग-निरत नित रहते हैं,
शूलों का मूल नसाने को,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को।
है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके वीर नर के मग में?
खम ठोंक ठेलता है जब नर,
पर्वत के जाते पाँव उखड़।
मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है।
गुण बड़े एक से एक प्रखर,
हैं छिपे मानवों के भीतर,
मेंहदी में जैसे लाली हो,
वर्तिका-बीच उजियाली हो।
बत्ती जो नहीं जलाता है,
रोशनी नहीं वह पाता है।
पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड,
झरती रस की धारा अखण्ड,
मेंहदी जब सहती है प्रहार,
बनती ललनाओं का सिंगार।
जब फूल पिरोये जाते हैं,
हम उनको गले लगाते हैं।
वसुधा का नेता कौन हुआ?
भूखण्ड-विजेता कौन हुआ?
अतुलित यश क्रेता कौन हुआ?
नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ?
जिसने न कभी आराम किया,
विघ्नों में रहकर नाम किया।
जब विघ्न सामने आते हैं,
सोते से हमें जगाते हैं,
मन को मरोड़ते हैं पल-पल,
तन को झँझोरते हैं पल-पल।
सत्पथ की ओर लगाकर ही,
जाते हैं हमें जगाकर ही।
वाटिका और वन एक नहीं,
आराम और रण एक नहीं।
वर्षा, अंधड़, आतप अखंड,
पौरुष के हैं साधन प्रचण्ड।
वन में प्रसून तो खिलते हैं,
बागों में शाल न मिलते हैं।
कंकरियाँ जिनकी सेज सुघर,
छाया देता केवल अम्बर,
विपदाएँ दूध पिलाती हैं,
लोरी आँधियाँ सुनाती हैं।
जो लाक्षा-गृह में जलते हैं,
वे ही शूरमा निकलते हैं।
बढ़कर विपत्तियों पर छा जा,
मेरे किशोर! मेरे ताजा!
जीवन का रस छन जाने दे,
तन को पत्थर बन जाने दे।
तू स्वयं तेज भयकारी है,
क्या कर सकती चिनगारी है?
One's again Minorstudy tribute and Remembering Ramdhari Singh Dinkar.
He was a prominent Hindi writer, poet and essayist.
He is established as the poet of the best Veer Ras of the modern era.
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